टूटे हुए सपने की सुने कौन सिसकी? अन्तर को चीर व्यथा पलकों पर ठिठकी। हार नहीं मानूँगा, रार नई ठानूँगा, काल के कपाल पर लिखता-मिटाता हूँ, गीत नया गाता हूँ। - दो अनुभूतियां